Tuesday, 21 February 2017


       अज्ञात रहस्यमय तंत्रों की खोज

           गुप्तसाधना तंत्र
      यह ग्रंथ हमारे शोध व अनुसंधान के अनुसार है… क्योंकि मैने उन गोपनीय योगियों के सान्निध्य मे रहकर उन प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन व साधनाओं को किया है…
बहुत समय मैं तंत्रों की खोज व अनुसंधान मे कार्य कर रहा था.. क्योंकि आजकल तंत्र के विभीत्स रूप को जनमानस के बीच मे स्थापित कर दिया है… कुछ तथाकथित तांत्रिकों ने.. और जनसाधारण को तंत्र के नाम पर लूटते रहे.. है… और लोगों के जीवन से खिलवाड करते रहे..
बचपन से ही मेरा मन तंत्र के प्रति आकर्षित था… और साधनाओं को प्रति रूझान धीरे धीरे अत्याधिक बढता गया आज मेरी तंत्र की यात्रा को पूरे नौ साल हो गये है. और तंत्र शोध मे अनेक बहुत से गोपनीय तथ्य को जाना है.. और प्रमाणिक ज्ञान को प्राप्त किया है… और साधनामय जीवन की तपस्या को पूर्णता का ओर ले जाने का प्रयास कर रहा हूं.. जो तंत्र का अनुभव मुझे हुआ है… उसे जाने से पूर्व मैं आप सबके मध्य रखना चाहता हूं… जिससे आप सब तंत्र के वास्तविक स्वरूप को जान सके और तंत्र को अपने जीवन मे उतार सके. और यह गुप्तसाधना तंत्र जीवन का बहुत उच्चकोटी का तंत्र ग्रंथ है… क्योंकि उसके अंतर्गत साधको को अनेक बहुत गोपनीय जानकारी प्राप्त होगी… और कौलाचार से संबंधित सही और प्रमाणिक जानकारी भी प्राप्ति होगी… जो मैने स्वयं कुलाचार से साधनारत समय प्राप्त की है…
और यह ग्रंथ मात्र साधकों के ज्ञान की वृद्धि और सही रूप से तंत्र को जानने के लिए प्रकाशित कर रहा हूं… और आज से दिनांक 20 फरवरी 2017 से इसका लेखनकार्य को मैं प्रारम्भ कर रहा हूं… और भविष्य मे इसको प्रकाशित किया जायेगा कृति के रूप… क्योंकि अभी यह अधूरा ग्रंथ है… और पूर्ण ग्रंथ का शोध जारी है… जहां 12 पटलों का शोध मैने किया है वहां तक लिखने का प्रयास यहां पर जरूर करूंगा..
और जो अनु
भव मेरे कुलाचार पर है उन्हें यहां पर व्याख्या के रूप मे प्रकाशित किया है.. ताकि साधक को सही जानकारी प्राप्त हो.. यदि फिर भी साधक के मन मे कोई भी प्रश्न उत्पन्न है… या कोई विषय समझ नहीं आ रहा है. तो साधक हमसे पत्र व्यवहार या ब्हट्सअप या ईमेल या फोन कर सकते है. ….और हमने अपना पता पहले ही लिखा दिया है.. यहां पे.
… आज के समय तंत्र अपनी ख्याति खोता जा रहा है…. प्राचीन समय मे तंत्र हमारे पूर्वजों के पास था… जिसमे यह अपनी चरम उच्च सीमा पे था. और पूज्यनीय था.. और आज के समय लोग तंत्र से घृणा करते है.. भय खाते है. क्योंकि इन सबके सामने तंत्र के ठेकेदारों ने तंत्र के गलत स्वरूप को प्रकाशित किया… और लोगों को तंत्र के नाम पे लूटते जा रहे है.. और भोले भाले लोग अपने जीवन को बर्बाद करते जा रहे और समय को भी. अपने धन को भी. .
आज का युवक तंत्र प्रति आकर्षित बहुत है.. केवल वशीकरण और सिद्धियों को लिए.. अधिकतर साधक यही कहते है कि गुरू जी हमे साधना बता दो… और दीक्षा दे दो… और हम सिद्धि को प्राप्त कर लेंगे.. कुछ तो यही कहते है कि गुरू जी क्या आपके पास सिद्ध मंत्र नहीं होते है… साधना कोई तमाशा नहीं…क्योंकि तुम साधना करने आये हो या तमाशा करने… साधना करनी है तो यह तमाशा बंद करना होगा… साधना मे साधना के प्रतिपादित नियम ही करेंगे… जो प्राकृत है.. इसलिए यह गुप्त साधना तंत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है.. और उम्मीद करता हूं कि आपको यह तंत्र ग्रंथ पसंद आयेगा.. और आप सब इसे अपने जीवन मे उतारेंगे…. और साधना के क्षेत्र ने अपना एक कदम आगे बढायेंगे.. और मैं प्रार्थना करता सदगुरूदेवों व मांआदिशक्ति और परमपिता से आप सब तंत्र के सही रूप जान सके और अपने जीवन मे उतार सके..
प्रणाम
आप सबका अपना
निखिल ठाकुर…
                         अनुक्रमणिका
             प्रथम: पटल.. कुलाचार महात्म्य
            द्वितीय: पटल …तपस़्या एवं तीर्थ सेवा का फल
            तृतीय: पटल …पच्ञागोपसाना
           चतुर्थ: पटल….साधनोपय
           पंचम: पटल…पुरस्क्रिया
           षष्टम: पटल ….दक्षिणकालिका की आराधना विधि
           सप्तम: पटल…परमतत्व
          अष्टम :पटल…सिद्धारिचक्र
          नवम: पटल…धनदा देवी के मंत्र, पूजाविधि
          दशम: पटल.. मातांगी देवी के मंत्रादि
          एकादश: पटल..माला वर्णन
          द्वादश: पटल… परमाक्षरी गायत्री

            गुप्त साधना तंत्र  
            प्रथमः  पटल
        कुलाचार महात्मय
कैलालशिखरे रम्ये नानारत्नोपशोभिते |
तं कदाचित सुखासिनं भगवन्तं त्रिलोचनम् ||
पप्रच्छ परया भक्तया देवी लोकहिते रता ||1||
एकदा भगवान त्रिलोचन नानारत्नोपशोभित मनोहर कैलासगिरी ~शिखर पर सुख से उपविष्ट थे, उसी समय देवी पार्वती ने लोक के हित ~साधन करने के मानस से परम भक्तिपूर्वक देवादिदेव महेश्वर से जिज्ञासा की ||1||
सम्पूर्ण तंत्र ग्रंथ मे भगवान शिव और माँ आदिशक्ति की वार्ता है… और माँ ने जनकल्याण के लिए भगवान से तंत्र ज्ञान को उजागरत करने की जिज्ञासा की… … और प्रेमवशीभुत भुतबाबन ने जग कल्याण के लिए तंत्र ज्ञान को प्रकाशित और माँआदि शक्ति को दिया…. जितने भी तंत्र ग्रंथ बने है उनके भैरव भैरवी संवाद, शिव पार्वती संवाद है… और सभी तंत्र ग्रंथ मे सही रूप से ज्ञान को इस धरा पर प्रकाशित किया है… पर कालांतर मैं तंत्र अपनी महिमा को खोता जा रहा है… कारण कुछ भीत्स तांत्रिकों के कारण… जिन्हे तंत्र का सही ज्ञान नही और अपने आप को सिद्ध मान बैठे है… तो आज मैं निखिल ठाकुर उन सभी गुप्त तंत्रों को फिर से जनमाना के मध्य लाने की प्रयास. कर रहा हूं… जो उन प्राचीन योगियों के पास सुरक्षित है… और जहां तक मेरा प्रयास और अनुसंधान पहुंचा है… वहां तक दो दो ग्रंथ मेरे हाथ मे लगे है… जिनका ज्ञान मुझे उन गुरूओं से प्राप्त हुआ जो अपने आप मे उच्चकोटी के है.. तो उसी ज्ञान को आज यहां सार्वजनिक कर रहा हूं… और जहां तक मेरा अध्ययन और प्रयास है मै वहां तक सही रूप से ज्ञान को आगे प्रसारित करने की कोशिश करूंगा…
गुप्त साधना तंत्र …..साधनात्मक जगत का बहुत ही उच्चकोटी का तंत्र है.. और इस तंत्र ग्रंथ मे 12 पटल है… पहला पटल कुलाचार महात्मय का है… और इसी तरह से 12 पटलों मे साधना से संबंधित अनेक तथ्य को साधकों के लिए इस तंत्र मे वर्णित है… जिन्हे हम धीरे धीरे समझेंगे…
यहां पर माँ सदाशिव से भक्तिपूर्वक लोक के हित साधन करने की जिज्ञासा को व्यक्त की है… और कहा कि हे देव आप मुझे उस तंत्र को कहो मुझसे जिससे जनमाना अपने आप का हित कर सके और सिद्धियों को प्राप्त कर सके..
श्रीदेव्युवाच —
 देवदेव महादेव लोकानुग्रह कारक |
कुलाचारस्य माहात्म्यं पुरैवसूचितंत्वया ||2||
देवी ने कहा —
हे देवदेव! आप देवतागणों मे श्रेष्ठ हैं एवं सर्वदा समस्त लोकों के प्रति सातिशय अनुग्रह को प्रकट करते हैं | हे नाथ आपने पहले कुलाचार के महात्म्य का प्रकाशन किया है..||2||
माँ ने कहा कि हे देवादिदेव आप तो सबसे से श्रेष्ठ… देवताओं मे भी सर्वश्रेष्ठ है… और सदा सभी लोकों के प्रति उदार, कल्याणकारी और सभी से प्रेम दया करते है… अपना आभार प्रकट करते है… हे नाथों के नाथ.. आपने ही तो पहले कुलाचार के रहस्य को उजागरत किया था… और उसे जनकल्याण के लिए प्रतिपादित किया… है…
यहां पर मां कुलाचार के रहस्य को पुनः उजागरत करना चाहती है.. कुलाचार सभी के लिए एक रहस्य बना है.. और साधक कुलाचार से भय खाते है… और अपने आप को उससे दूर से जाते है… पर कुलाचार है क्या…. कभी समझने की कोशिश नहीं की… पहले तो मेरी भी धारणा कुलाचार के प्रति गलत थी… जब मैने कौलाचार मे प्रवेश किया…. और साधनारत रहा और साधनारत हूं तो मेरे अंदर जो भ्रांतिसाॉ थी वो स्वतः धीरे धीरे दूर हो गई.
गुरू जी ने कौलाचार के विषय मे बताया कि…… कौलाचार असली नाम नही है…… बल्कि तंत्र मे इसे कुलाचार या कुलमार्ग कहते है… और कुलाचार का अर्थ है अपने कुल के अनुसार आचरण करना है… जिसप्रकार से तुम्हारे पिता है… और उनके पिता अर्थात आपके दादा कुलाचार्य हुये.. क्योंकि उन्हीं के अनुसार तुम्हारे कुल का विस्तार हो रहा है… और आगे फिर तुम और तुम्हारे बच्चे. जो आपके अनुसार प्रतिपादित नियमों का पालन करते हुये जीवनयापन करते है.. तो उसे कुलाचार कहते है… और इस तंत्र ग्रंथ मे कौलाचार का सही नाम दिया है कुलाचार…… और माँ ने कहा कि आपने पहले कुलाचार पद्धति का विकास किया है… उसके रहस्य का सृष्टि मे प्रकाशित किसे है..
 तत् कथं गोपितं देव मम प्राणेश्वर प्रभो |
कथयस्व महाभाग यद्यहं तव वल्लभा ||3||
हे प्राणेश्वर! इस समय उस कुलाचार (कौलाचार) के माहात्म्य को क्यों गोपित (गोपनीय) कर दिया है? हे! देवेश्वर उसे मेरे निकट बतावें | हे महाभाग! यदि आप मुझे प्राणवल्लभा रूप में जानते हैं, तब इस समय मेरे निकट उस गोपनीय कुलाचार महात्म्य को प्रकाशित करें..
मां ने परमपिता से कहा कि पहले तो आपने कुलाचार को प्रकाशित किया… और उसके माध्यम से सृजन आदि क्रिया को पूर्ण किया और अब आपने उसे गोपनीय कर दिया… गुप्त से गुप्त कर दिया…यह तो सत्य है कि कौलाचार एक गोपनीय मार्ग है.. .जिसमें साधना गुप्त रूप से सम्पन्न होती है… और आज तक कौलाचार जनमानस के मध्य नहीं आया पाया है.. और अधिकतर आज के समय साधकों ने इस मार्ग को समझने या जानने की कोशिश नहीं की है… और जिन्होंने इस मार्ग मे निष्णात प्राप्त की है तोअपने आप कही चुपचाप शांत व आनन्दमय से साधना मे लीन है… संलग्न है. ..
माँ ने यहां पर परमपिता से कहा कि आप उस गोपनीय पद्धति के मुझे बताये.. कि कौलाचार क्या है.. यदि मैं आपकी प्राणप्रिय हूं… या आप मुझे अपने प्राणेश से अधिक प्रेम करते है तो हे… महाभाग आप मुझसे इस गोपनीय ज्ञान को कहें.. माँ ने जनकल्याण की भावना से महादेव से यह प्रार्थना की…
और आज कौलाचार से संबंधित जो कुछ ज्ञान है वे केवल योगियों के पास सुरक्षित है… और आज भी यह ज्ञान गुप्त है.. कौलाचार मार्ग ब्रह्म को जानने के मार्ग है.. ब्रह्मवेता होने का मार्ग है… ब्रह्म मे स्थित होने का मार्ग है… और सृष्टि के समस्त गुढ रहस्यों को जानने मार्ग है.. और वैरभाव से अपने आप को हर स्थिति मे कायम रखने का मार्ग है.. कौलाचार पद्धति से यदि साधक की दीक्षा हो जाये… तो वह साधक ज्ञान के एक नये तंतुओं से जुड़े जाता है.. और धीरे धीरे जीवन मे वह साधना के उच्चतम शिखिर पर पहुंच जाता है.. और उस साधक पर कोई शक्ति का प्रहार असर नहीं करता है… चाहे वह मारण हो… या अन्य… यह मेरा स्वयं की अनुभव है..
क्रमशः
सिद्धहिमालय सिद्धपीठ


……..गुरू मेरो जोगी निराला…
… गुरू और शिष्य का सत्य
अधिकतर लोग मुझसे कहते है…कि निखिल जी हमें…किसी योग्य गुरू का पता बता तो…पर…यह बात कहना शोभा….है…उनको…क्योंकि जो स्वयं ही गुरू का तयन नहीं कर सकता …स्वयं यात्रा पर नही चल सकता है…उसे गुरू प्राप्त होने के बाद ही वह सही कहेगा..कि …..यह गुरू मुझे योग्य नहीं लगा…और मन केवल संशय और संशय ही उसकी यात्रा में बाधा बनकर उभरता रहता…खडा रहता है….इसलिए मेरे तंत्र प्रेमियों….मेरे प्राण प्रिय आत्मनों…मेरे तंत्र सहयोगियो….व मित्रो….गुरू का चयन तुम्हे करना है…वहां तक पहुंचने का मार्ग स्वयं प्रशस्त करना है….तुम्हे…इसलिए तुम यह कार्य किसी पर मत थोपो….मत डालो…स्वयं करो…और सत्य को अनुभव करो…दुसरे के अनुभव को सुनकर तुम अनुभव नही कर सकते है..नही दान सकते है..उसकी भुमिका व कठिनाईयो…को….जब तक स्वयं नहीं करेंगे..तब तक मात्र तुम जडमत ही बने रहेंगे….
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य. ..यह है कि… गुरू का चुनाव शिष्य नहीं कर सकता है… क्योंकि शिष्य केवल अपनी बुद्धि के अनुसार ही चयन करते हो… क्योंकि तुम्हारी चेतना उस तत्व को नहीं पहचान सकती है… नहीं जान सकती है. ….क्योंकि गुरू को जानना, पहचानना कोई सरल कार्य नहीं है.. क्योंकि गुरू एक तत्व है… कोई शरीर का पुर्जा नहीं… यह तुम्हारी गलती है… कि तुम गुरू को केवल शरीर मान लेते हो…
गुरू और शिष्य बनाये नहीं जाते है.. वे तो केवल समर्पण से ही बन जाते है… और गुरू की चयन करता है शिष्य का.. कि वह योग्य है.. या नहीं… क्योंकि शिष्य यह चयन कर सकता है.. कि गुरू योग्य है कि… नहीं…
क्योंकि यदि तुम फैसले ले सकते हो… तो…. फिर तुम्हें गुरू की आवश्यकता ही क्यों… तुम तो स्वयं ही हर फैसले के निर्णय लेने मे समर्थ हो… और स्वयं ही हर फैसले का आंकलन करते हो… और गुरू को खोजने लग जाते है… और उसे अपने ही आंकलन अनुसार ही तोलने लगते हो, परखने लगते हो… और बुद्धिमान मान बैठे हो… और तुम्हे गुरू नहीं… बल्कि अपने अनुसार कार्य करने वाला व्यक्ति चाहिए… क्योंकि गुरू अलग ही तत्व है.. अलग ही ऊर्जा है…
तुम मे पात्रता नहीं है कि तुम चुनाव कर सकते हो… तुम चयन कर सकते हो.. तुम्हें जब यह ही मालुम ही नहीं है कि तुम्हारे लिए क्या सही है… क्या सही नही है.. क्सा गलत है.. कौन वस्तु तुम्हारे योग्य है. .तो फिर गुरू का चयन किस तरह कर सकते है..
बचपन से लेकर तुम्हारे लिए ही तुम्हारे मां बाप ने हर वस्तु का चयन किया है.. क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि तुम्हारे लिए क्या सही है क्या गलत है……यह तुम निर्णय नहीं ले सकते हो… क्या तुम अपने मां बाप के निर्णय ले सकते है. .क्या तुमने यह निर्णय लिया की जो तुम्हारे मां बाप है… वे तुम्हारे योग्य है कि नहीं… क्योंकि तुम केवल अंधेरे को ही चुन सकते है.. प्रकाश को नहीं.
तुम्हारे स्थिति ही ऐसी है.. क्योंकि जब तुम अपने मां बाप के निर्णय के विरोध करते है,तो क्या होता है… कि अंत मे तुम थककर हारकर उन्हीं के पास लौट आते है. और गलती का अफसोस करते हो.. जिन मां बाप ने बचपन से तुम्हारे पक्ष मे निर्णय लिये है… तुम्हारे हित मे लिये है.. क्योंकि वे निष्पक्ष होते है. तुम्हारी खुशी चाहते है.. तुम्हे खुश देखना चाहते है..
यही स्थिति गुरू और शिष्य की. .मैं तो टूक शब्द ठोक के बोलता हूं कि शिष्य कभी भी गुरू का निर्णय नहीं ले सकते है कि… ये गुरू मेरे योग्य है कि नही… तुम निर्णय लेने योग्य होते है तो तुम्हे फिर किसी की सलाह की आवश्यकता नहीं होती और न किसी आंकलन की. तुम निर्णय लोगे.. अपनी बुद्धि के अनुसार, अपनी परिधि के अनुसार, क्योंकि तुम केवल निर्णय ले सकते हो अपनी क्षमता के अनुसार, अपनी योग्यता के अनुसार…. जितनी तुम्हारी सोच है… तुम्हारी क्षमता है.. योग्यता है..
यही सभी कारण है कि तुम सही गुरू की बजाये तुम पाखंडी, ढोंगी गुरू को अपना गुरू बना बैठते है.. तुम यह निर्णय अपनी योग्यता के अनुसार ही लेते है.. और तुम यही निर्णय लेते है कि तुम्हारे लिये क्या सही है, क्या गलत है, कौन साधना करनी है कौन नहीं, और वे गुरू भी वैसे होते है, और तुम्हारे ही अनुसार ही कार्य करते है,…इसी को तो कहते है….
“”””””गुरू घण्टाल “””” और शिष्य अपनी मौज करता रहता है. …..जब अंत समय आता है…. त६ तुम आड में बैठे होंगे….. कि गुरू अब देंगे.. कुछ न कुछ देंगे….क्योंकि जो गुप्त चीज है उसे अब देंगे… अंत समय है. साथ लेंगे थोडा जायेंगे.. और वे गुरू भी अंतिम समय यही सोचते है… कि मैने तो जीवन मे कुछ किया ही नही और जीवन भर शिष्य के ईशारों मे नीचता रहा और अब भी ये मुझे अपने ईशारे मे नचा रहे है… …क्या ये गुरू है.. गुरू का निर्णय शिष्य नहीं ले सकता है….. बल्कि गुरू ही शिष्य का निर्णय लेता है..

जिस तरह से माटी का निर्माण कुम्हार करता है… तो उसी प्रकार से गुरू भी शिष्य का निर्माण करता है… बल्कि शिष्य नही… और ना ही माटी कुम्हार का.. यदि मिट्टी कुम्हार के अनुसार ही बनने को तैयार होती है.. अपने आपको उसके हाथों मे सौंप देती है.. तो तभी कुछ बनकर आती है.. और मूल्यवान व सुन्दर बन जाती हैं… मिट्टी को फ्र व सब कुछ सहन ही करना पडेगा…. कुम्हार उसके पीटेगा, गुंथेगा, घुंसे मारकर कर… और उसका निर्माण करता है.. और भीतर से सहारा देता है और बाहर से चोट मारता…. तब जाके कुछ बनकर आती है वह, तब जाते उसकी कीमत बढती है.. ठीक गुरू भी इसी तरह से क्रिया करता है.. शिष्य का निर्माण करता है..
यदि मिट्टी कुम्हार से कहे तो मुझे इस तरह से बना… और इस तरह से निर्माण कर… तो क्या फिर मिट्टी कुछ बन जायेगी.. नहीं न… तो कुम्हार क्या करता… कुम्हार ऐसी मिट्टी को इक्ट्ठा करके किसी गंदे गढ्ढे में डाल देगा… क्योंकि उसकी जगह ही वोही है…क्योंकि यह निर्णय तो कुम्हार ही लेगा की मिट्टी का निर्माण किस तरह से करना है… न यह निर्णय मिट्टी नहीं लेगी….. कि उसका निर्णय किस तरह से होना चाहिए….और मिट्टी यह निर्णय नहीं ले सकती है… कि उसका निर्माण किस तरह से होना चाहिए..या यह कुम्हार उसका निर्माण सही रूप से कर पायेगा…… क्योंकि इसका निर्णय लेने की योग्यता मिट्टी के अंदर नहीं है.. और न हो भी सकती है… यह निर्णय केवल कुम्हार ही लेगा की मिट्टी का निर्माण किस तरह से करना है.. किस तरह से उसका उपयोग करना है… मिट्टी को स्वयं के उपयोग का ज्ञान नहीं है.. वह तो केवल कुम्हार को ही है.. क्योंकि वह उसका निर्माणक है, उसका गुरू है… वह ही निर्णय ले सकता है कि मिट्टी किस योग्य है.. और किस तरह से उसका सहीं उपयोग करना है..
ठीक यही स्थिति गुरू और शिष्य की है… आजकल के शिष्य भी मिट्टी की तरह है… जो सारे निर्णय स्वयं लेता है… और उसका हाल मिट्टी की तरह होता है…..जो उस गड्ढे मे पडी है..क्योंकि मिट्टी को तो कुम्हार पर पूर्ण रूप से विश्वास करना है… उसके प्रति समर्पित होना ही पडेगा… बिना किसी उपेक्षा के… एक दम खाली…जब पात्र खाली होगा तो तब ही उसमें कुछ भर सकता है..
अन्यथा वोही स्थिति होगी जो मिट्टीकी है.. जो गढ्ढे मे पडी है.. शिष्य का निर्णय गुरू ही लेता… है… गुरू ही शिष्य बनाता है… बल्कि शिष्य. नहीं… शिष्य की बुद्धि इतनी नहीं है कि वह गुरू का चुनाव कर सके.. गुरू का निर्णय ले सके…..यदि शिष्य मे पात्रता है तो गुरू स्वयं ही शिष्य को अपने तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त कर देता है.. क्योंकि तब गुरू पूर्ण ऊर्जा के साथ अपने शिष्य को अपनी ओर खींच लेता है… और शिष्य तो इसी भ्रम में रहता है कि हमने यात्रा की है गुरू तक पहुंचने की… गुरू को खोजने में.. और जब तक शिष्य अपनी नकारात्मकता को छोड़ने नहीं देता है तब तक गुरू प्रहार करता रहता है…..कुम्हार की तरह… जो मिट्टी की नकारात्मकता को गूंज और पीट पीट कर दूर करता है.. और गुरू ज्ञान के सहारे ही दूर करता है..
इसलिए मैं कह रहा हूं कि तुम केवल खाली रहो…. भरे हुये नहीं… तुम खाली हो तो प्रकृति तुम्हे भरने के पूरी कोशिश करती है… तुम खाली रहो…. पांडित्य तो केवल भरा हुआ ज्ञान है….. यह वह ज्ञान है जिसमें उनका अपना कोई अनुभव नहीं है… और न ही शोध…. केवल रटा रटाया ज्ञान…. जो अनंत काल से चलता आ रहा है… और आगे चलते रहेगा… क्योंकि वे सब जानकारी पहले से ही मौजूद है… हमारे समक्ष… बस हमने केवल अध्ययन किया… और अध्ययन करके अपने ही अनुसार व्याख्या कर दी है… और अनुभव है ही नहीं.. क्योंकि तुमने उसके स्वाद को नहीं चखा है… और तुमने उसे अपना मान लिया है.. ठीक उसी प्रकार से… जिस प्रकार जिसने शहद के स्वाद नहीं लिया है… और वह उसे परिभाषित कर रहा है.. और उसे क्या पता कि शहद मीठा है या कडवा है… मिठा तो है यह सबने सुना है… पर खाने में कैसा है… कैसा अनुभव है.. यह ज्ञात नहीं है.. यह तो वोही जानता है जिसने उसका स्वाद चखा हैै…. अनुभव किया है… और समाज की हालात ही ऐसी है… यहां पर सभी दूसरे के स्वाद को अपना स्वाद कह देते है.. अपने अनुभव बताते है.. और व्याख्या कर देते है.. पांडित्य तो अहंकार है……भ्रम… क्योंकि ज्ञान से जानकारी की वृद्धि होती है़ और जानकारी से भ्रम…
और लोग भ्रम रूपी ज्ञान ले कर ही समाज मे अपनी व्याख्या करते रहते है… और अपने आपको यह मान लेता है कि उसके अब कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है… क्योंकि मैं सब कुछ जानता है… पर इसी सब कुछ के कारण वह दूसरो को भी अंधेरे में रखता है और स्वयं को भी… और आजकल शिष्य तो यही चाहते है कि गुरू जी है… बस सबकुछ हो जायेगा.. मुझे करने की जरूरत नहीं है… गुरू जी तो स्वामी है.. वह है… मुझे तो केवल गुरू जी के पास बैठना है… और गुरू जी मुझे यह साधना चाहिए…. वह है… मुझे तो केवल गुरू जी के पास बैठना है… और गुरू जी मुझे यह साधना चाहिए…. पर मुझे करना कुछ नहीं है… और बिना करें यह सिद्धि प्राप्त हो जाये……. और वे गुरू भी कहते है कोई बात नहीं बेटा. .बस अनुष्ठान कर लेंगे हम तेरे लिए और तुझे मां सिद्ध हो जायेगी…..बस बेटा तीन अनुष्ठान करने होंगे..हर एक एक अनुष्ठान मे कम से कम दस से बीस हजार खर्च आ जायेगा…….. और शिष्य सोचत़ा है कि बस सिद्धि प्राप्त हो जायेगी और पैसे दे देता है. तीन अनुष्ठान करने के बाद भी जब कुछ नहीं होता है तो… गुरू के पास चला जाता है.. और कहते है गुरू जी कुछ अनुभव हुये ही नहीं.. तो गुरू जी रहता है बेटा कल आ जाना ज मे समाधि मे जाकर पता करूंगा…….. अगले दिन आता है… तो गुरू कहता है कि मां कह रही है कि तुममें पात्रता नहीं है…..तुम मे योग्यता नहीं है… तो शिष्य रहता है गुरू जी फिर क्या करना होगा… कुछ नी बेटे एक अनुष्ठान करना होगा… बस कम से कम 50 हजार खर्च आयेगा..
यहां पर तुम शिष्य भी गलत और वह गुरू भी…. दोनो पाखंड को बढावा दे रहे है…यदि भगवान ने तुम्हे बुद्धि दी हो तो उसका प्रयोग करना जानते हो तो… तुम इस तरह के पाखंड को बढावा नहीं देते… क्योंकि
………पहली बात कि दुनिया भी कोई भी गुरू ऐसा नहीं है कि जो तुम्हें बिना कुछ क्रिया किये सिद्ध बना दें…. और न ही किस के अंदर यह क्षमता है… यह केवल तंत्र के गुरू आदिदेव महादेव के पास है… जो गुरू इस तरह का दावा करता है तो वह धोखे बाज है…
दूसरी बात उन गुरूओं को जो यह कहते है कि मां कह रही है तुम में योग्यता का नहीं है… तो यदि तुम क्रिया कर रहे है… तो तुम मुझ योग्य बना सकते है… उसके योग्य… जिससे सिद्धि प्राप्त हो सके… और ये गुरू ऐसे होते है कि मानो सारी सिद्धियां इनके वश में… और इनका प्रभुत्व है इनके ऊपर ये जहां भेंजगे वहां जायेगी… ये तो प्रकृति को अपनेअनुसार चला सकते है… तो फिर इस सृष्टि को ब्रह्मा की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए…
तुम ऐसे शिष्य हो… जो अपने अनुसार निर्णय लेकर इस प्रकार के गुरू का चुनाव कर सकते है… और इसी तरह से जीवन में चुनाव करते रहते है.. इसलिए हर बार कह रहा हूं कि शिष्य में पात्रता नहीं है कि वे गुरू का चुनाव कर सके… केवल गुरू ही शिष्य का चुनाव कर सकता है.. यही रहस्य है गुरू और शिष्य का और पाखंड…
तुम केवल खाली रहो. ……साक्षी भाव बने रहो… दो हो रहा है… गुरू जो करवा रहा है…. बस नामित माध्यम बनकर करते रहे हो. ….सबकुछ तुम्हे प्राप्त होता रहेगा… क्योंकि गुरू ही निर्णय लेगा कि तुम्हे क्या देना चाहिए क्या नहीं..
यही सृष्टि और आगामशास्त्रों का ज्ञान है… और सत्यता है… और वेद का ज्ञान है…
प्रणाम
तुम सबका हितार्थी….
निखिल ठाकुर…..

Saturday, 11 February 2017

यंत्र साधना


.........श्रीमहाकाल शनि यंत्र.........   •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
जीवन में हर व्यक्ति शनि से भय खाता है... और बहुत डरता है... क्योंकि ज्योतिष मैं शनि के सबसे क्रूर ग्रह माना गया है.... परंतु शनि तो न्याय के देवता है... और वह हमें दंड हमारे कर्मों के अनुसार देते है... क्योंकि जैसा हमारा कर्म होगा वैसा हमें दंड मिलेगा.. और शनि परम दयालु ग्रह भी.... है... मेरे मतानुसार शनि के समान दयालु और हितैषी ग्रह कोई नहीं है.... क्योंकि शनि जो भी दंड देता है... वह दंड हमारे सुनहरे भविष्य की निर्माण करता है......शास्त्रों में शनि के विषय में यह क्या गया है... शनि रंक को राजा और राजा रंक बना देता है..
    यह भी सारभौमिक सत्य है कि राशि में अशुभ शनि हो तो जातक बहुत सी पीडा उठानी पडती है....अधिकतर लोग शनि का साढेसाती से डरते है... और इस सृष्टि में 100 मे 99% लोग आज भी शनि साढेसाती और ढैय्या से ग्रस्त और उनका जीवन अधिक संघर्षमय और कष्टमय प्रतीत होता जैसा लगता है...
   और कुछ ज्योतिषजन इस बात का फायदा उठाकर जातक के जीवन के साथ खिलवाड करते है.... और लंबा चौडा पूजन विधान बताते है... और उनसे कराते है... जिससे जातक का धन और समय दोनों बर्बाद तो हो जाते है... और लाभ कुछ भी नहीं मिलता है... फिर जातक निराश होकर इधर उधर धक्के खाने लगता है... कभी अमुक ज्योतिष कै पास तो कभी अमुक बाबा के पास और इस तरह से जातक और जातिका अपने जीवन को तहस वहस कर देते है... और उन्हें चारों तरफ से निराशा ही निराशा दिखना लगती है.... और अपने आप को समस्या से गिरा मानकर जीवन यापन बडी मुश्किल से करता है.......
   क्या ऐसा कोई समाधान नहीं है.... जिसके प्रभाव से शनि का शुभता को बढाया जा सके और शनिदेव की कृपा जाचक या जातिका पर होती रहे और जीवन यापन सुखपूर्वक होता रहे....      
    हमारे  शास्त्रों मे अनेक उपाय बताये गये... और लाल किताब में भी अनेक उपाय बताये गये है जो सरल और सुगम है.. पर यह भी सत्य है कि हर उपाय हर साधक के लिये नहीं बने होते है... क्योंकि अधिकतर मैने अपने जीवन में ऐसे अनेक साधक और साधिका को देखा है कि जिन्होंने अनेक उपाये या ग्रहों के संबंधित अनेक टोटकों को किया पर लाभ उन्हें शून्य मात्रा मे प्राप्त हुये....
  उपाय करना अच्छी बात है... पर उपाये के पीछे तथ्य को जाने बिना उपाय नहीं करना चाहिये. .....क्योंकि उपाय एक विज्ञान  है... जो कुछ वाशिष्ट वस्तुओं के समावेश बना हुआ है... और हर वस्तु हर किसी के लिए लाभकारी सिद्ध नहीं होती है... इसलिए..... उपाय से महत्वपूर्ण और सटीक और सही और प्रमाणिक केवल एक ही मार्ग है.... वह साधना मार्ग... क्योंकि इसमे मार्ग मे साधक स्वयं को उस स्थिति मे खडी करके तराशता है.... जो स्थिति एक देवता की होती है... साधना का विषय मे ग्रंथों मे यह कहा गया है.... कि देवता बनकर साधना करो.....और यह मार्ग जो हर समस्या का समाधान सही और सटीकता के साथ निवारण करता है... क्योंकि साधक जब देवता की साधना करता है.... तो उस देवता की ऊर्जा और गुण उस साधक के अंदर आ जाते है... और वह देवता प्रसन्न होकर साधक के हर समस्या का निदान कर देता है....
    इसलिए साधना मार्ग सबसे अतिउतम मार्ग है..... और शनिदेव की साधना करना को जीवन में अपने आप को शनि देव की कृपा को प्राप्त करके उनके साहचर्य को प्राप्त करना है... और इस यंत्र का साधना तो अपने आप उच्चता है... यह तो महाकाल शनि यंत्र साधना है... और इसके प्रभाव से साधक सर्वत्र अजेय हो जाता है... क्योंकि यह तो साक्षात महाकाल और शनिदेव की साधना और जीवन की महत्वपूर्ण साधना... शनिदेव. तो अत्यंत सौम्य और दयालु, और उदारता के देव है... तो उनसे डरना कैसा.... भय कैसा..... और उनकी साधना करके हम तो उनके सान्निध्य को प्राप्त कर सके.. और जीवन को एक नयी ऊर्जा दे सके... एक नयी स्फूर्ति दे सके..मुक्त पंछी की तरह जीवन की उडान भर सके... यही तो जीवन है.... जहां सम्पूर्णता के साथ उडान भरकर स्वतंत्र रूप से आकाश मे उडान भर सके बिना किसी के डर और भय के.... बिना किसी प्रतिबंध के.... संकोच के... तब जीवन मे पूर्णता आ सकती है... अन्यथा भय के कारण तुम केवल अपने आप को संकुठित करते रहेंगे और जीवन भर पछतावे के सिवा और कुछ हाथ मे नहीं आयेगा..
      और यह यंत्र को जीवन की पूर्णता का यंत्र है...मुझे मालूम है... तुम सब इसके लाभ के बारे मे जानने के लिए उत्सुक है... तो इस यंत्र के साधक को निम्न लाभ प्राप्त होने लगते है.
   👉 महाकाल शनि यंत्र की साधना कर साधक सर्वत्र कार्य में अजेय हो जाता है और फिर उसके सामने सभी सभी सफलताएं उसके चरण चिंता हैं....
     👉 इस यंत्र सी साधना से और यह यंत्र धारण करने से साधक का व्यक्तित्व अत्यधिक आकर्षक एवं भव्य हो जाता है, उसके इर्द-गिर्द एक तेज युक्त आभा मण्डल निर्मित हो जाता है, जिससे उसके आस-पास के लोग स्वतः उसकी ओर आकर्षित होने लगते हैं और उसकी हर आज्ञा  का बिना किसी कटाक्ष के पालन करते है..
   👉 यह यंत्र साधना सिद्ध होते ही या यंत्र धारण करते ही व्यक्ति की दरिद्रता, रोग, शत्रुभय, ऋण आदि स्वतः ही नष्ट हो जाती है.....
   👉व्यक्ति के घर में निरन्तर धन का आगमन होता ही रहता है, नौकरी, इंटरव्यू, परीक्षा और अदालत आदि के कार्य में निश्चित सफलता मिलती है....
   ? व्यवसाय मैं पूर्ण तरक्की होने लगती है और अगर नौकरी पेशा वाला साधक हो तो  उसकी पदोन्नति शीघ्र होती है...
   👉इस उच्चकोटी के यंत्र साधना के प्रभाव से घर में सुख शांति का विकास होता है  और यदि किसी ने घर पर तांत्रिक प्रयोग करके रखा है, या कोई ऊपरी बाधा या तांत्रिक अभिचार कर्म है तो वह नष्ट हो जाता है.....
    👉 सबसे बडी बात इस यंत्र साधना की यह है कि यदि कुंडली  मैं निर्मित अनिष्ट योग हो तो वे फलहीन हो जाते है, अगर दुर्घटना एवं अकाल मृत्यु का योग हो तो वे भी अल्प हो जाते है....
    👉  इस यंत्र साधना और  धारण करने के प्रभाव से साधक जिस कार्य में हाथ डालता है, उसमें उसे सफलता मिलती है...
    👉 ऐसा व्यक्ति समाज में सम्माननीय एवं पूज्यनीय होता है, उच्चकोटी के लोग एवं अधिकारी भी उसकी बात को मानते है... और सम्मान करते है...
     👉 साधक सभी का प्रिय हो जाता है, और जीवन भर में उसे किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता....
     👉इसके साथ ही साथ उसका पारिवारिक जीवन भी अत्यंत सुखी हो जाता है, यदि कोई क्लेश व्याप्त हो तो वह समाप्त हो जाता है..
     👉 साधक की समस्त इच्छाएं व कामनाएं पूर्ण होती  है और वह स्वयं भी आश्चर्य चकित रह जाता है, कि किस प्रकार से उसकी सारी अभिलाषाएँ स्वतः ही पूर्ण हो रही है...
     यह यंत्र साधना तो बहुत ही महत्वपूर्ण है आज के युग में... क्योंकि आज के युग में साधक की समस्यायें अत्याधिक है... और समाधान उसे कहीं पर भी नजर नहीं आता है... और साधक क्रिया ऐसी हो जाती है.. उसके विचार स्वतः ऐसे बन जाते है.. कि वह इन सब स्थितियों को पूरा करने के कार्यशील रहता है.... और वास्तव में ही यह यंत्र अपने आप में अद्वितीय तेजस्वी है...
     आने वाले विशिष्ट मुहूर्तों मे इस साधना का शिविर  साधक के लिये सिद्धहिमालय सिद्धपीठ द्वारा आयोजित किया जायेगा... जिससे साधकों के एक नये व्यक्तित्व का विकास हो सके और समस्या से मुक्त जीवन जी सके....... और साधना 24 दिन की है... और उम्मीद है कुछ नवीन और तंत्र के प्रति अपने जीवन को समर्पित करने वाले साधक इस साधना को करने लिए आगे आयेंगे......
       आप सबका अपना प्यारा सा
     निखिल ठाकुर............
जय माँ चक्ररेश्वरी जगतअधिष्ठात्रि राजराजेश्वरी चक्राधिष्ठात्रि

हेरम्ब गणपति वांछा कल्पतता यंत्र साधना


हेरम्ब गणपति वांछा कल्पलता यंत्र साधना 

(नौकरी, पदोन्नति, शीघ्र विवाह, व्यवसाय में तरक्की ,धन, एवं पुत्र की प्राप्ति आदि समस्त इच्छा पूर्ति हेतु...) 

   जीवन मे हमें कभी कभी कुछ विशिष्ट समय प्राप्त होता है.... कि जिसमें प्रकृति स्वतः ही अपनी ऊर्जा को पूरे ब्रह्मांड में फैला देती है.... और साधक उसी ऊर्जा को अपने अंदर समाहित करके अपने जीवन को आनंद हर्षोल्लास से भर देता है.....क्योंकि प्रकृति का प्रेम अपने आप मे अद्वितीय होता है... और स्वार्थ रहित..... और आदिपुरूष और प्रकृति के प्रेम से ही उत्पन्न....भगवान गणपति तो अपने आप मे प्रकृति के प्रेम की अनुपम और स्वर्णिम भेंट है..
    गणपति तो समस्त विघ्नों का नाश करने वाले और शुभता का प्रतीक माना गया है.. और देवताओं में प्रथम पूज्य और गण भी...

   गणपति की साधना करना को जीवन मे शुभता को जाग्रत करना... नई ऊर्जा को अपने अंदर समाहित करना और कल्याणमय, आनन्दमय से युक्त करना है...यही तो जीवन ७ै जिसमे रस हो, आनन्द गो, प्रेम हो, सुख हो, शांति हो.... क्योंकि गणपति का स्वरूप ही यही है... 

   और यह यंत्र साधना तो जीवन के करोड़ पुण्य के बाद ही साधक को प्राप्त होती है गुरू कृपा से... क्योंकि यह यंत्र साधना... """हेरम्ब गणपति वांछा कल्पलता यंत्र साधना"""है.. 

   वांछा का अर्थ है..... इच्छा..... या यों कहें की मनुष्य का इच्छायें"""""कल्पतता""""अर्थात पूर्णता... या यूं कहें कि... कल्प वृक्ष.... जैसे महत्वपूर्ण दैवी वृक्ष....
    और वांछा कल्पतता का अर्थ है... पूर्णता... यहां पूर्णता का अर्थ है ईच्छा शेष न रहना.... सारी ईच्छायें पूर्ण करना और उन्हें भोगते हुये मोक्ष को प्राप्त करना.... और हेरंब स्वयं गणपति का स्वरूप है... हेरम्ब अर्थात रोग, चिंता, सर्वदुःख आदि से मुक्ति... विघ्न का नाश... तो यह साधना और यंत्र अपने आप कितना उच्चकोटी का है.. क्योंकि उसकी उच्चता तो तुम तभी जान पाओगे जब करोगे... क्योंकि जब तक तुम स्वाद नहीं चखा तो तब तक तुम स्वाद का मजा नहीं ले सकते... और यह तो संसार का अद्वितीय दुर्लभ यंत्र है.. और यंत्रराज कल्पवृक्ष के समान इस तंत्र की साधना करने वाले साधक की समस्त प्रकार की भावनाओं  को पूर्ण करने की सामर्थ्य एवं शक्ति रखता है... और साधक का जीवन दैवतुल्य हो जाता है..
    तांत्रिक ग्रंथों में इस यंत्र के बारे कहा गया है-
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    """हेरम्ब वांछा कल्पलता न होनो न च तर्पणम..... |

    यन्त्र रचनं स्मरण देव सिद्धि स्यात यदिच्छति हि तद भवेत....... ||

 दशावृत्या तथा विष्णुरूद्रशक्तिर्भवेदिह....|||||..

   ...||| यह हेरम्ब गणपति वांछा कल्पलता यंत्र साधना विश्व की दुर्लभ सरल साधना है,,,, इसके प्रयोग में होम या तर्पण करने की जरूरत नहीं होती | केवल इस यंत्रराज की निर्माण, मंत्र जप से ही श्रेष्ठ साधक की प्रत्येक ईच्छा पूर्ण हो जाती है.. |||
   हेरम्ब तंत्र"""तो अपने आप में अपने आप मे उच्चकोटी का तंत्र है.... उसमे तो उच्चकोटी की साधनाओं का वर्णन है... और हेरम्ब गणपति साधना करना को जीवन का सौभाग्य है.. परंतु यहां पर हेरम्ब गणपति यंत्र साधना का विषय है.. जो हेरम्ब तंत्र की उच्चकोटी साधना में से एक.......
   मनुष्य अपने जीवन में तब तक अपूर्ण है जब तक उसे किसी दैवीय ऊर्जा का साहचर्य प्राप्त नहीं होता है....क्योंकि दैवीय शक्ति के साहचर्य से ही हम जीवन को पूर्णता दो सकते है.....और आजकल भी हिमाचल के अनेक स्थान मे अनेक तरह के गुप्त तांत्रिक मिल जायेंगे जो उच्चकोटी के तांत्रिक है... पर वे गुप्त है... स्वयं मेरे मामा जी... जिन्हों लोग ज्ञानीराज कहते है... वे भी एक उच्चकोटी के तांत्रिक है... और मेरे नाना जी तो पूरे गढ में प्रधान और उच्चकोटी के तांत्रिक थे... पर ये सब हिमाचल में गुप्त रूप से रहते है....और एक आम साधारण व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करते है...
   तंत्र की उच्चता के नाप पाना बहुत मुश्किल है... और उच्चकोटी की साधना मिलना बहुत ही पुण्य कर्म है... या यूं कहें कि कोटि कोटि पुण्य के फल जब एकत्रित होते है तभी ये उच्चकोटी की साधना साधकों को प्राप्त होती है़.....निश्चय ही साधक के सौभाग्य की उदय होना है... जो उसे उच्चकोटी के श्रेणी की साधना प्राप्त होती....
    यदि आप तंत्र में उच्चता के प्राप्त करना चाहते है... जीवन पूर्ण पुरूषवान होकर निष्कंटक होकर, पूर्ण आनन्द के साथ व्यतीत करना चाहते है.. तो यह साधना जरूर करें..
   मुझे उम्मीद है कि कुछ उच्चकोटी के साधक इन साधनाओं को करने लिए  आगे आयेंगे और जीवन उतारेंगे..
   प्रणाम...
 जय मां चक्ररेश्वरी जगतअधिष्ठात्रि मां राजराजेश्वरी चक्राधिष्ठात्रि मां.....
 आप सबका अपना प्यारा सा साधक

  निखिल ठाकुर...


ब्रह्मर्षि मार्कण्डेय
  बचपन से ही हम अपने बजुर्गों से कहानी सुनते आये है... देवी देवता की... जिन्हें हम स्थानीय देवता कहते है... हिमाचल से हर सुदूर गांवों मे स्थानीय देवी देवता के मंदिर मिलेंगे और उनके प्रतीक भी... क्योंकि यहां लोगों की देवी देवताओं पर आस्था अत्याधिक है.... और जीवन का आधे से ज्यादा समय इनका देवी देवताओं और आस्था में गुजर जाता है...हमारे गांव के लोगों के अनुसार यह कथा इस प्रकार से... कि मार्कण्डेय के बारे मे....
    यह कहीं से आये है हमारे गांव है... इसके पीछे की एक कहानी है... कि हमारे नारायण गढ में.. मां अम्बिका रहती थी... तो मार्कण्डेय... दूसरे गढ में रहते थे... ये ब्राह्मण थे.. वहां दूसरे गढ में 18 प्रकार की जाति थी... तो वहां. पर इनके स्थान पर कभी चिता जलाई जाती थी.. तो कभी नीच जाति के लोग आते जाते थे.. जिससे ये बहुत परेशान थे..
      तो एक दिन ब्रह्मर्षि मार्कण्डेय जी भ्रमण करते हुये... हमारे नारायण गढ मे आ गये... तो इन्होने देखा सि यहां पर शांति है... और हमारे गढ में.. तीन ही जाती थी.. एक पण्डित तो एक ठाकुरू और एक लुहार... तो इसे देखकर इन्हे हमारे गढ मे सकून भी मिला.. और हमारे गढ मे वातावरण भी सुन्दरमय था.. तो इनका मन यहां रहने के हो गया... पर यह तब तक संभव नहीं.. था.. जब मां अम्बिका इन्हे यहां रहने की आज्ञा नहीं.. देती.. मां तो भोली भाली थी.... पर क्रोधमय स्वरूप अपने आप विकराल था..
तो वहां पर मार्कण्डेय जी ने मां से कहा... हे माता.....आप यहां क्या कर रहे... यहां तो सुन्दरता कुछ है ही नहीं.. आप हमारे गढ मे जाये घूमने कभी वह काफी सुन्दर और प्राकृतिक मयी है... इस तरह से व्याख्या करने से देवी खुश हो गई... तो देवी वहां चली भ्रमण करने... तो मार्कण्डेय जी तब तक पूरे गढ मे अपना स्थापना कर दी... जब देवी को पता चला तो...देवी को बहुत दुःख हुआ... तू मार्कण्डेय जी ने प्रार्थना की हे देवी आप वहां पर स्थापित हो जाओ.. देवी मैं वहां पर बहुत दुःखी हो चुका कोई मेरी परवाह नहीं करता है..
इसलिए देवी आप वहां पर स्थापित होकर इन्हे दंड दे.... इनका भक्षण करें... पर हमारे गढ में रहना कोई सरल बात नही था... तू जीते मार्कण्डेय जी ने.... शराऊली मां के पास जाकर वहां.. पर मां को वचनो मे बांध दिया... शराऊली जोगिनी बहुत ही उग्र देवी है.. वहां पर मां महाकाली की दो योगिनी
स्वरूप है उस मंदिर में जिनका नाम तृष्णा और कृष्णा है... कृष्णा को हमारी दहाती भाषा में काली कुकशी कहा जाता है...... जो मंदिर के बाहर स्थापित है... और तृष्णा मंदिर के अन्दर स्थापित है... कहते है. इनको मार्कण्डेय जी ने वचनो मे बांध लिया था.. अर्थात.... उनको उल्टे फेरे में बांध था.. मार्कण्डेय जी ने.. जिससे उसे वहां पे रहने का स्थान प्राप्त हो...
   क्रमशः....
आप सबका अपना
निखिल ठाकुर

Wednesday, 8 February 2017

             
                                                               सिद्धहिमालय  सिद्धपीठ
                      प्रिय साधको
                              शुभाशीष.. ..यह ब्लॉग साधनाओं और सत्य प्रमाणिक ज्ञान के लिए बनाया गया है... ...और इसमे वोही पोस्टे डाली जायेगी जो हम अपने ग्रुप सिद्धहिमालय सिद्धपीठ.... जो फेसबुक में है... और सभी साधकों के लिए यह ब्लॉग बनाया गया है...आज के युग में लोगों का विश्वास मंत्र तंत्र के प्रति अत्याधिक बढता जा रहा है.. और आजकल जिसे देखों वह तंत्र के नाम पर अपनी दुकान खोल के बैठे है.. .....और अपने नाम के आगे बडे से बडा उच्चकोटी का नाम लगा के रख दिया है... और सिद्धियों की एक लंबी चौडी डिग्री.... लगा के रख दी.. .और लोगों इनके चपेट मे आ जाते है...
      सिद्धहिमालय सिद्धपीठ. ....ने इन तंत्र के नामी दुकानदारो के खिलाफ अब मुहिम उठाई है... और साधकों के समक्ष सही तंत्र को लाने की प्रयास कर रही है.. .जो प्रमाणिक है... और गुप्त ज्ञान है.
   और इसमे आप सबका सहयोग चाहिए. ....जिससे इस गुप्त आलोकिक पीठ का निर्माण हो सके और प्राचीन ज्ञान  को पुनः इस धरा मे प्रवाहित कर सके....जो आज के समय मे हिमालय के कंदाराओं के योगियों के पास सुरक्षित है गुप्त रूप से इसीलिए लोग सही और प्रमाणिक ज्ञान  से दूर है और धोखे की दुकान मे अपना जीवन बर्बाद कर रहे है...
     लोग अधिकतर चमत्कार की उम्मीद करते है.... क्योंकि हमारे देश मे तो चमत्कार को नमस्कार करते है.. ..पंरतु आजकल चमत्कार बलात्कार हो गया है....तंत्र के नाम मे कई स्त्रियों ने अपना जीवन बर्बाद कर दिया है... और रोज विज्ञापन  पढकर स्त्रियां इनके चंगुल मे फंस जाती है.. .
    आज उन्ही लड़कियों और स्त्रियों को यही कहना चाहता हूं कि तंत्र कोई चमत्कार  का विषय नहीं है यह तो ऊर्जा के रूपांतरण  का विषय है... और स्त्रीयां अधिकतर वशीकरण को पीछे पागल होती है कि उनकी प्रेमा उनेहे छोड़कर चला गया है या उसके पति का दूसरी के साथ चक्कर है आदि और फिर तंत्र के सहारा लेने की कोशिश कल%ी है और पाखंडी तांत्रितों के चुंगल में फंस कर अपने जीवन को तहस नहस  कर देती है.
     दिन प्रतिदिन मैं न्यूज मे सुनता हू और पढता हूं कि अमुक जगह पे अमुक नाम का तांत्रिक पकडा गया है या अमुक नाम का बाबा पकडा गया है. ..इत्यादी और साथ ही उसके काले करतुतों का छीठापर्चा भी होता है.. इसे तांत्रितों से सदैव सावधान रहना चाहिये... .मेरी केवल एक ही नसीहत है जबतक तुम्हे किसी तांत्रिक पर भरोसा न हो तब तक उसससे न मिले और न ही धन दें... और पहले कान करवा लो... फिर चाहे उसे उसकी फीस दे देना.. ..
          सिद्धहिमालय सिद्धपीठ. ..में सही और प्रमाणिक तंत्र और गुह्यविद्याओं को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है. ..जिसमे केवल आप सबके सहयोग की जरूरत है.. .क्योंकि बिना सहयोग को प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करन पाना मुश्किल है. ..और साधना का गोपनियता को सामने ला पाना मुश्किल है.. .और सिद्धहिमालय  सिद्धपीठ. ..गुप्त साधनात्मक पीठ है. ..जो देवभुमि  मंडी हिमाचल नामक स्थान मे बनने जा रहा है और अभी निर्माधीन कार्य है. ...और यहां पर शीघ्र ही साधकों को साधनायें करवाई जायेगी.. . और अधिकतर साधकों को केवल भगवान नाम की दीक्षा और साधना करवाई जायेगी.. . ...अन्य साधनायें केवल उन्हीं को करवाई जो केवल तंत्र के लिए  समर्पित है.. .जो केवल तंत्र की साधना को ही अपने जीवन मानते है.. .और सिद्धहिमालय सिद्धपीठ उनको तंत्र की गुप्त साधनाओं में प्रवीण करने लिए सदैव तत्पर है... और जिससे समाज मे सही तंत्र का जन्म हो सके और जीवन सही रूप संचालित हो सके...
   इसलिए  आप सबका सहयोग ही इस पीठ को आगे भविष्य तक संचलयमान रख सकता है.. ..
      जय माँचक्रेशेवरी
       आप सबका अपना प्यारा साधक
    निखिल ठाकुर.. .......
   जय मां चक्रेश्वेरी
निखिल ठाकुर.