Saturday, 11 February 2017


ब्रह्मर्षि मार्कण्डेय
  बचपन से ही हम अपने बजुर्गों से कहानी सुनते आये है... देवी देवता की... जिन्हें हम स्थानीय देवता कहते है... हिमाचल से हर सुदूर गांवों मे स्थानीय देवी देवता के मंदिर मिलेंगे और उनके प्रतीक भी... क्योंकि यहां लोगों की देवी देवताओं पर आस्था अत्याधिक है.... और जीवन का आधे से ज्यादा समय इनका देवी देवताओं और आस्था में गुजर जाता है...हमारे गांव के लोगों के अनुसार यह कथा इस प्रकार से... कि मार्कण्डेय के बारे मे....
    यह कहीं से आये है हमारे गांव है... इसके पीछे की एक कहानी है... कि हमारे नारायण गढ में.. मां अम्बिका रहती थी... तो मार्कण्डेय... दूसरे गढ में रहते थे... ये ब्राह्मण थे.. वहां दूसरे गढ में 18 प्रकार की जाति थी... तो वहां. पर इनके स्थान पर कभी चिता जलाई जाती थी.. तो कभी नीच जाति के लोग आते जाते थे.. जिससे ये बहुत परेशान थे..
      तो एक दिन ब्रह्मर्षि मार्कण्डेय जी भ्रमण करते हुये... हमारे नारायण गढ मे आ गये... तो इन्होने देखा सि यहां पर शांति है... और हमारे गढ में.. तीन ही जाती थी.. एक पण्डित तो एक ठाकुरू और एक लुहार... तो इसे देखकर इन्हे हमारे गढ मे सकून भी मिला.. और हमारे गढ मे वातावरण भी सुन्दरमय था.. तो इनका मन यहां रहने के हो गया... पर यह तब तक संभव नहीं.. था.. जब मां अम्बिका इन्हे यहां रहने की आज्ञा नहीं.. देती.. मां तो भोली भाली थी.... पर क्रोधमय स्वरूप अपने आप विकराल था..
तो वहां पर मार्कण्डेय जी ने मां से कहा... हे माता.....आप यहां क्या कर रहे... यहां तो सुन्दरता कुछ है ही नहीं.. आप हमारे गढ मे जाये घूमने कभी वह काफी सुन्दर और प्राकृतिक मयी है... इस तरह से व्याख्या करने से देवी खुश हो गई... तो देवी वहां चली भ्रमण करने... तो मार्कण्डेय जी तब तक पूरे गढ मे अपना स्थापना कर दी... जब देवी को पता चला तो...देवी को बहुत दुःख हुआ... तू मार्कण्डेय जी ने प्रार्थना की हे देवी आप वहां पर स्थापित हो जाओ.. देवी मैं वहां पर बहुत दुःखी हो चुका कोई मेरी परवाह नहीं करता है..
इसलिए देवी आप वहां पर स्थापित होकर इन्हे दंड दे.... इनका भक्षण करें... पर हमारे गढ में रहना कोई सरल बात नही था... तू जीते मार्कण्डेय जी ने.... शराऊली मां के पास जाकर वहां.. पर मां को वचनो मे बांध दिया... शराऊली जोगिनी बहुत ही उग्र देवी है.. वहां पर मां महाकाली की दो योगिनी
स्वरूप है उस मंदिर में जिनका नाम तृष्णा और कृष्णा है... कृष्णा को हमारी दहाती भाषा में काली कुकशी कहा जाता है...... जो मंदिर के बाहर स्थापित है... और तृष्णा मंदिर के अन्दर स्थापित है... कहते है. इनको मार्कण्डेय जी ने वचनो मे बांध लिया था.. अर्थात.... उनको उल्टे फेरे में बांध था.. मार्कण्डेय जी ने.. जिससे उसे वहां पे रहने का स्थान प्राप्त हो...
   क्रमशः....
आप सबका अपना
निखिल ठाकुर

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