Thursday, 9 March 2017

अज्ञात रहस्यमय तंत्रों की खोज


           
                                                 !!!!गुप्तसाधना तंत्र!!!!!
       अभी तक हमने पढा कि ...क्यों कुलाचार के महात्म्य को गोपित कर दिया...
               और बहुत सी जानकारियों को...अब उससे आगें..

                     !!!!श्रीशिव उवाच:---
                श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि सारात्सारं परात्परम् |
                तव स्नेहान्महादेवि दासोअस्मि तव सुन्दरि |
                तत्कथां कथयिष्यामि सावधानावधारय ||4||

!!! भगवान श्रीशिव ने कहा:--
          हे देवि ! मैं आपके निकट सारतर परम तत्वभूत गोपनीय बात को बता रहा हूं ,इसे श्रवण करें | मैं आपका चिरदास हूं | हे सुन्दरि! आपके प्रति मेरी अचला श्रद्धा है,मैं उस श्रद्धा के वशवर्ती होकर गोपित कुलाचार - महात्म्य का वर्णन करूंगा | इस कुलाचारीय बात को गोपित रखना चाहिए | अतः इस कथन को अत्यंत सावधानी के साथ श्रवण करें..||4||

  अधिकतर मैने देखा है कि लोग कुलाचार से भय खाते है...क्योंकि उनकी दृष्टि से कुलाचार गलत है...उसमे मैथुन होता है...पंचमकार होता है..परंतु कुलाचार तो दिव्यता की अवस्था ....जिसे स्वयं भगवान ने गुप्त रखा था...क्योंकि कुलाचार के भाव को कोई प्राप्त कर गया तो वह मुक्त हो जाता है सारे बंधनों से...पापों से...कर्म बंधनों से...उसके लिए कोई बंधन नहीं रहता है...वह उन्मत की अवस्था को प्राप्त कर लेता है..और यहां स्वयं परम पिता कह रहे है ....कि ये प्रिये ....तुम मुझे प्राणों से भी  प्रिये है...कितना प्रेम है परम पिता का माँ के प्रति...अपनी पत्नी के प्रति .....और इसी प्रेम के वशीभूत होकर इस परम गोपनीय कुलाचार के महात्म्य को... रहस्य को बता रहा हूं.. इसे गोपित ही रखना..... और इसे पूर्ण एकाग्रता और निष्ठा के साथ सुनो....
    यहां गोपित का प्रयोग किया माँ के लिए परमपिता ने.... तो आप समझ सकते है कि कितना महत्वपूर्ण तंत्र है... मार्ग है... दिव्यभाव है कुलाचार..... और कई तंत्र ग्रंथों मे यह बताया गया है कि कुलाचार से बचकर श्रेष्ठ मार्ग कोई है ही नहीं... इसलिए... आप सब जो इस तंत्र को पढ रहे है.... सुन रहे हैं तो आप सब भी इसे गोपित रखे... और ध्यान पूर्वक इस तंत्र को समझे...और जाने....

           कुलाचारं महाज्ञानं गोप्तव्यं पशु सकंटे |
          प्रगोप्तव्यं महादेवि स्वयोनिरिव पार्वती ||5||

  हे पार्वती! यह कुलाचार महाज्ञान का साधन है | जो उस कुलाचार के अनुसार साधन करते है, वह तत्वज्ञान का लाभ कर सकते हैं | इस महाज्ञानप्रद कुलाचार को सर्वदा पश्र्वाचारी के निकट स्वीय योनि के समान गोपन करें ||5||

   यहां पर परमपिता ने बहुत महत्वपूर्ण  बात कही है... क्योकि जब साधक कुलाचार से साधना रत होता है तो उसका तादात्म्य प्रकृति का साथ हो जाता है और....वह ब्रह्मांड के रहस्य को जान लेता है.. और हर प्रकार से सब ऐश्वर्यों को भोगते हुये... ब्रह्मवेता बन जाना है ....ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है.... ब्रह्मतत्व को प्राप्त कर लेता है... इस कुलाचार महाज्ञान को गुप्त रखना चाहिए... जिस प्रकार स्त्री अपनी योनि को गुप्त रखती है... दूसरे के समाने प्रदर्शित नहीं करती है... उसी तरह इस महाज्ञान प्रद कुलाचार को धूर्त लोगों,जो पशुवृति से युक्त हो.. पापी हो... दुराचारी हो... उसके समक्ष इस महाज्ञान को स्वयं की योनि के समान गुप्त रखना चाहिए.. क्योंकि यह महाज्ञान है.... ब्रह्म को प्राप्त करने की स्थिति ...शिवमय होने की कला है... इसीलिए इसे दिव्य भाव कहा गया है ...सबसे श्रेष्ठ भाव कहा गया है... तंत्र का मूल कहा गया है..

         !!वेदागमपुराणानि वेदशास्त्राणि पार्वति |
          एतन्मध्ये सारभूतं कुलाचारं सुदुर्लभम् !!6!!

 !! हे पार्वती! वेद, आगम, पुराण, वेदान्तादि --ये सभी सारभूतशास्त्र हैं एवं इन सभी में भी कुलाचार सारतम है| अतः यह परम दुर्लभ है !!6!!

  यहां पर वेद आगम, पुराण,वेदान्तादि ..को सभी का सारभूत शास्त्र बताया गया है... क्योंकि इनके बिना हम अधूरे है.. पुराण वास्तव में हमें भगवान की लीला पढने का ज्ञान के प्राप्त करने के लिए नहीं है... बल्कि पुराणों के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ होता है हमें कि नीति क्या है...नियमों का ज्ञान के प्राप्त होता है... नीति आचार व्यवहार का ज्ञान प्राप्त होता... आग शास्त्र तो तंत्र की महत्वपूर्ण शाखा है.. और कलियुग है आगम शास्त्र ही सबसे महत्वपूर्ण है...प्रभाव दिखाने वाला शास्त्र है... सिद्धियों को प्राप्त करने का मार्ग है... वेद तो ईश्वर का वाणी है... जिसमे मंत्रों का वर्णन है... ईश्वर के निराकार के रूप का वर्णन है.. वेदों को का मुख्य ध्येय तो यही है.... कि तुम मनुष्य बनो...कि तुम मानव तो बनो.... जब तुम यह नहीं बन सकते है तो तब तक तुम अपूर्ण के हो... कितनी सटीकता की बात कही वेदों में... और बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है...

         !!वक्त्रकोटिलहस्त्रेस्तु जिह्वाकोटिशतैरपि |
          कुलाचारस्य महात्म्यं वर्णितुं नैव शक्यते!!7!!

!! सहस्त्रकोटि वदन एवं शतकोटि जिह्वाओं के द्वारा भी कोई इस कुलाचार के महात्म्य का वर्णन नहीं कर सकता है!! 7!!

    कुलाचार तो गुप्त है.... अत्यंत गुढ है... क्योंकि इसकी साधनायें और मंत्र किसी भी पुस्तक मे नहीं मिलते है... और न ही किसी जगह मिलेंगे.... कुलाचार से संबंधित जितने ग्रंथ है.... उनमें गुप्त रूप मंत्र वर्णित है... क्योंकि मंत्र को वहां से गुप्त विधि के माध्यम से निकाले जाते है... तंत्र ग्रंथ जितने भी है... उनमें स्वाभाविक रूप से मंत्र या साधना विधि पढने को नहीं मिलती है... जबकि मंत्र उसके अंदर दिये होते है.. और विधि भी... पर आम मनुष्य नहीं समझ पाता है... उसके लिए वह संस्कृत का मात्र एक ग्रंथ है... पहले तो मेरी स्थिति ऐसी थी... एक दिन गुरू जी ने बताया कि मंत्रों का निर्माण कैसे होता है... और तंत्र ग्रंथों मे मंत्र और विधि किस तरह से अंकित होती है.. जबकि हम समझ नहीं पाते है.. कुलाचार को दिव्य और गुप्त मार्ग कहा गया.. कुलाचार की साधनायें भी बहुत गुप्त है... और उससे कठिन और गुप्त तो कुलाचार की साधनाओं का क्रिया है.. जो आम व्यक्ति नहीं कर पाता है| और जब साधक कुलाचार मे प्रवेश करता है... भैरवी चक्र मे प्रवेश करता है तो उसका सौभाग्य जाग्रत हो जाता है.. और वह भैरवी पुत्र बन जाता है... ईश पुत्र हो जाता है.. और परमपिता की कथन सही कोटि बदन क्यों न हो.... और शत जिह्वा भी क्यों न हो.. तब भी ले कुलाचार के महात्म्य का वर्णन करने मे असमर्थ है.... असमर्थ है वे क्योंकि इसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है... जिसे बांधा नहीं जा सकता है... उसका वर्णक करना असंभव है... और कोई टिप्पणी करे तो वह मूर्खता है |क्योंकि शब्द सीमित दायरे तक ही उपयोग होते. .. और असीमित को बांधना शब्दों के अंदर शक्ति नहीं है... और कुलाचार असीमित है.. गुढ से गुढ.. जिसका अथाह लगाना भी असंभव है|

       !!किञ्चिन्मया तु चापल्यात् कथयामि श्रृणुष्व|
        शक्तिमूलं जगत् सर्वं शक्तिमूलं परन्तु!! 8!!

 !! हे देवि! आपके निकट कुलाचार के महात्म्य का वर्णन करना मेरी चपलता मात्र है| फिर भी आपके निकट यथाशक्ति किञ्चिन्मात्र इसका कीर्तन कर रहा हूं, श्रवण करें | शक्ति ही अनन्त जगत के आदिकारण है एवं शक्ति ही समस्त तपस्याओं का मूल है!! 8!!

   यहां पर परमपिता सदाशिव जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है... कि शक्ति जगत के आदिकारण है... और शक्ति ही समस्त तपस्याओं का मूल है.... यह बहुतही महत्वपूर्ण बात कही है... क्योंकि बिना शक्ति का जगत कुछ भी नही है... बिना प्रकृति का सृष्टि नामित मात्र पाषाण के समान है... पत्थर के समान ही है.. और शक्ति का बिना शिव... शव है.. क्योंकि शक्ति संचार करता है.. संचलयमान कर्ता है... कारण है... और शिव शक्ति का विस्तार करने वाले... शक्ति का साथ लयमान होकर आदिपुरूष बनकर सृष्टि का सृजन कार्य के करते है.. जिस प्रकार से पुरूष सम्भोग करके स्त्री गर्भवती हो जाती है... और एक नयी सृष्टि को जन्मदेती है.. एक नयी पिंड को जन्म देती है.. उसी प्रकार से शक्ति और शिव मिलकर इस सृष्टि को संचलयमान करके है.. और शिव की इस क्रिया मे शक्ति अपना पूर्ण सहयोग देती है. और फिर शक्ति का माध्यम में सृष्टि मे कुछ नवीनतम घटित होता है...और भैरवी चक्र का रहस्य यही है.  कुलाचार का महात्म्य यही है.. पर इसे गहन रूप से समझना कठिन है| हर साधना, जप तप, का मूल ध्येय ही शक्ति है... |

      !!शक्तिमाश्रित्य निवसेद् यत्र कुत्राश्रमे वसन्|
     साधकस्यार्चितां शक्तिं साधकज्ञान कारिणीम्!! 9!!

  !!साधक गण शक्ति का आश्रय कर जिस किसी भी आश्रम में निवास क्यों न करें, उसी में रहकर वे सिद्धि लाभ कर सकता है|साधकगण शक्ति का अर्चना करने पर ही, वह शक्ति साधक को ज्ञान प्रदान करता है!! 9!!

 साधक साधनारत होकर जिस भी आश्रम मे रहे ...कहीं भी साधना पत रहे.. किसी भी अवस्था मे रहकर साधनारत रह रहा हो अभी तक तो उसे उसी मे रहकर सिद्धि का लाभ प्राप्त होता है.. और लाभ प्राप्त कर सकता है कि जब कौलाचार से साधक साधना पत रहता है. या करता है तो उसके लिए कोई भी नियम बाधित नहीं होता है...वह साधक निर्बाधित होती है.. और उन्मतरूप होकर साधनारत रहता है.. क्योंकि जब कौलाचार से दीक्षा हो जाती है ..तो धीरे धीरे साधक दिव्यभाव मे प्रवेश कर जाता है और दिव्यभाव केवल एक शिशुवत की अवस्था है, जिसने माँ के गर्भ से जन्म तो लिया है..पर वह सब से अनभिज्ञ है, और अपनी मस्ती मे रहता है, न पाप का भय, न चिंता ,न खुशी, न आनंद, न पुण्य की चिंता.. जब मन किया रो दिया जब मन किया हंस दिया यही तो दिव्यता का आनंद है..., अहं, क्रोध, केवल आनंदित अवस्था यही दिव्यभाव की अवस्था है... परमहंस की अवस्था हो.. और वामाखेपा, परमहंस रामाकृष्ण, आदि अनेक योगियों ने इस अवस्था के प्राप्त किया है...|आप सब उनके बारे मे अच्छे से जानते भी होंगे... पढा भी होगा आप सपने यही अवस्था है... कुलाचार की... मां और पुत्र को प्रेम की... पिता और पुत्र को स्नेह की. |साधक के साधने पर और उसकी अर्चना करने पर ही वह शक्ति व सिद्धि साधक को ज्ञान प्रदान करती है|

    !!इहेलोके सुखं भुक्त्वा देवीदेहे प्रलीयते |
    साधकेन्द्रों महासिद्धिं लब्ध्वा याति हरेः पद्म!! 10!!

!!जो साधक शक्ति की आराधना करते हैं, वह इस लोक में विविध प्रकार के सुखों का भोग कर, देवी के देह में प्रलीन हो सकते हैं एवं वह साधकेन्द्र शक्ति साधना के बल से महासिद्धि का लाभ कर, अन्त में हरि पद को प्राप्त करते हैं!! 10!!

  महादेव के प्रत्येक कथन सत्य और यहां यह स्थिति देखकर मेरे नेत्रों से अश्रु की धारा आने के हो.. रहे... जो स्वयं कुलाचार की अधिष्ठात्रि है.. जो स्वयं इस जगत की माँ है... आदिशक्ति है... जिससे समस्त शक्तियों का पादुर्भाव हुआ है... वह स्वयं अपने पति को मुख से यह दिव्यता का ज्ञान के को समन रही है.. कितना प्रेम है माँ का परमपिता से प्रति.... स्वयं अधिष्ठात्रि होकर परमपिता से सान्निध्य से ज्ञान प्राप्त कर रही... ज्ञान के तो एक बयाना है.. दरअसल माँ तो परमपिता की सान्निध्य पाना चाहती है... उनकी दिव्य वाणी को सुनना चाहती है.... परमपिता कहे रहे कि जो साधक शक्ति का साधना करता... तुम्हारी साधना करता है.. प्रिये वह इस धरा पर अनेकों प्रकार के सुख, ऐश्वर्यों, आनंदों को भोग करता है, और अंत मे वह तुम ने विलीन हो जाता है और साधक शक्ति साधना के बल से महासिद्धि को प्राप्त कर लेता और अन्त मे  वह साधक हरिपद को प्राप्त कर लेता है... विष्णुतुल्य हो जाता है... विष्णु के समान हो जाता है| कुलाचार मे सबसे अधिक महता शक्ति तो दी गई है.. और इसमे शक्ति का साधना की जाती है.. वाममार्ग मे तो स्त्री को शक्ति का स्वरूप मानकर उसकी पूजा की जाती है.. और पुरूष को भैरव मानकर पूजा की जाती है... और तब जाकर साधना को करते है... और इसमे लिंग और योनि पूजन का महत्व अत्याधिक है.. बिना शक्ति के कुलाचार अधुरा है... वाममार्ग से.. और हर मार्ग मे शक्ति का साधना होती है.. दक्षिणी मार्ग मे श्रीविद्या, दसमहाविद्या, त्रिशक्ति साधना, योगिनी इत्यादि शक्तितत्व की साधना होती है.. और कुलाचार के पूर्व मत में तो माँ को साक्षात मानकर उसके सम्मुख साधना विशेष चक्र यंत्र का पूजन, मुद्रा और औपचारिक मैथुन के रूप मे किया जाता है... शाक्तमार्ग तो पूरा का पूरा शक्ति साधनाओं का है|कुलाचार का पूर्ण व्याख्या हयग्रीव जी ने की है... और उनसे पहले और उनसे बाद आज तक कोई कुलाचार को सही रूप से व्याख्या नहीं कर सका... उनके द्वारा रचित कुलार्णव तंत्र इसका प्रमाण है.. पर आज के समय यह तंत्र पूर्ण रूप से मिलना बहुत कठिन है.. और हमारे गुरू जी के अनुसार कुलार्णव तंत्र की प्राचीन पांडुलिपि हरिद्वार मे एक पंडित जी के पास है.. जो पूर्णरूप से संस्कृत में. |

      !!पञ्चाचारेण देवेशि कुलशक्तिं प्रपूजयेत |
     नटी कपालिका वेश्या रजकी नापिताड्गंना!! 11!!

!!हे देवेशि! पञ्चाचार क्रम से कुलशक्ति की अर्चना करें|नटी ,कापालिका कन्या, वेश्या, रजकी, नाई पत्नी आदि ||1!!

यहां पर सदाशिव भुतबाबन कह रहे है कि, साधक को पंचोपचार से कुलशक्ति का पूजन करना चाहिए |और साथ ही साथ नवकन्या के बारे मे बता रहे है....तंत्र मे कन्या का बहुत बडा महत्व है... कन्यापूजन करना तो सब पूनों से ऊपर बताया गया है.. और परम पिता ने 11/12 श्लोक मे यही बताया हैं... वनकन्या के नाम... और इनका महता को.... कन्या पूजन करने से ही सिद्धि प्राप्त होती है... कुमारी तंत्र तो कन्या तंत्र है....कौलाचार मे कन्या का महत्व अत्याधिक है... क्योंकि चक्र को चारों और आठ कन्या होती है... और नवमी स्वयं माँ चक्रेश्वरी होती है...|

      !!ब्राह्मणी शुद्रकन्या च तथा गोपालकन्यका |
      मालाकारस्य कन्या च नवकन्या: प्रकीर्तिता:!!12!!
!!ब्रह्माणी, शुद्रकन्या,गोपकन्या,एवं मालाकार-कन्या --ये ही "नवकन्या"के नाम से जानी जाती है!! 12!!

 ये नवकन्या के नाम है... और यही कन्याये ही नवकन्या के नाम से जाना जाती है.. और इनके नाम का वर्णन कई तंत्र ग्रंथों मे मिलता है... और कुमारी तंत्र तो कन्या तंत्र का रूप है... और उसमे तो माँ कालिका का ही वर्णन है.. और कुमारी कवच,कुमारी स्तोत्र, कुमारी तर्पणात्मक स्तोत्र, सहस्त्रनाम, कुमारी भेद, कुमारी दानक्रम फल, कुमारी पूजा प्रयोग एवं ध्यान आदि का वर्णन है... और नवकन्या के नाम के बारे मे कुमारी तंत्र मे कहा गया है.. जो
" कुमारी तंत्र"षष्ठःपटल:..कुलाचार कथनम मे 21/22वे श्लोक मे भी परमपिता ने नवकन्या के बारे मे कह है..ै.. उनके नामो को बताया है..
        "ब्राह्मणस्ताम्रपात्रे च मधुमद्यं प्रकल्पयेत|
नटी कापालिका वेश्या रजकी नापिताड्गंना ||21||
          ब्रह्माणी शुद्रकन्या च तथा गोपालकन्यका |
       मालाकारस्य कन्या च नवकन्या प्रकीर्तिता:||22||

ब्राह्मण ताम्रपात्रस्थित मधु को भी ही मद्य रूप में कल्पना करें, |नटी, कापालिका, वेश्या रजकी,नापितागंना,ब्राह्मणी,शुद्रकन्या,
गोपकन्या एवं मालाकार कन्या -ये नवकन्या या ग्रहणीया कुलयुवती के रूप में कहीं गयी है!! 21/22!!कुमारी तंत्र!!
    कुमारी की महता का पता तो हमे कुमारी तंत्र से ही चलता है.. और अन्य तंत्र मे भी कुमारी के बारे मे बताया गया है... उनके से प्रमुख तंत्र कुब्जिकातंत्र...
             कुब्जिकातंत्रे ---
अन्नं वस्त्रं तथा नीरं कुमार्य्यै ये ददाति हि|
अन्नं मेरूसमं देवी जलं च सागरोपमम्||6!!
वस्त्रैःकोटिसहस्त्राब्दशिवलोके महीयते |
पूजोपकरणानीह कुमार्य्यै ये ददाति हि|
सन्तुष्टा देवता तस्य पुत्रत्वे सानुकल्पते ||7!!
 
   कुब्जिका तंत्र मे कहा गया है कि जो मनुष्य कुमारी को अन्न, वस्त्र, तथा जल देता है, उसका अन्न पर्वत के समान तथा जल समुद्र का समान असीम हो जाता है|वस्त्र देने से खरबों वर्षों तक शिवलोक में निवास करता है| जो कुमारी को पूजोपकरण देता है उससे संतुष्ट होकर देवता उसके पुत्र रूप मे उत्पन्न होते है |
  इत्यादि अनेक ग्रंथों मे कुमारी पूजन का महत्व बताया गया और गुप्ततंत्र मे इनके नाम और भेद बताये है... इसलिए प्रत्येक साधक को एक बार अपने जीवन में कुमारी पूजन अवश्य करना चाहिये...
     
           !!विशेषवैदग्ध्ययुता: सर्वा एव कुलाडंगना |
         रूपयौवनसम्पन्ना शीलसौभाग्यशालिनी!!13!!

!!विशेषतः वे, जो विशेष रूप से गुणशालिनी है, ऐसी सर्वजातिय रूप यौवन सम्पन्ना, सुशीला एवं सौभाग्यशालिनी कन्या का भी "कुलांगना "के रूप मे ग्रहण किया जा सकता है!!
    ..  यहां पर महादेव भुतबाबन बता रहे है कि... जो विशेष रूप से गुणों से युक्त हो,सभीजातियों मे यौवन से युक्त हो, सुशील और सौभाग्यशालिनी कन्या हो... तो उसे भी कुलांगना के रूप मे ग्रहण कर सकते है... और उसका पूजन कर सकते है... क्योंकि कुमारी पूजन की महता है परम गोपनीय है... अधिकतर शास्त्रियों व पंडितों को ज्ञात हुआ नहीं होता है...क्योंकि कन्या के महत्व तो जानने के लिए प्राचीन तंत्र ग्रंथों रा अध्ययन करना होगा, समझना होगा.. सुयोग्य गुरू के सान्निध्य मे रहकर तंत्र को सिखना होगा... तभी हम तंत्र के स्वरूप को समझ सकेंगे और जान सकेंगे.. तंत्र अपने आप में एक गोपनीय विद्या रही है.. और अधिकतर कुछ धूर्त तांत्रिकों ने तंत्र को बिना जाने समझे ही इसका गलत प्रचार सार कर डाला है.. उनके से तो कुछ शास्त्री भी है... जो कथावाचक है.. कुछ अध्यात्म के खट्टर संत, तो कुछ पंडित आदि, और उन्होने लोगों के समक्ष तंत्र को एक भयावह रूप से प्रदर्शित किया और लोगों को तंत्र से दूर रहने का आदेश... और धीरे धीरे तंत्र का गलत रूप हमारे समक्ष ऊपर कर आया और आज स्थिति ऐसी हो गई कि गली गली मे तंत्र के ठेकेदार बनकर बैठे है... लोगों की जिन्दगी के खिलवाड कर रहे है.. जागो और तंत्र का सही रूप को जानो और समझो..
           
       !!पूजनीया प्रयत्नेन ततः सिद्धिर्भवेद् ध्रुवम्|
        सत्यं सत्यं महादेवि सत्यं सत्यं न संशय!!14!!

 !!उक्त कुलांगनाओं की पूजा यत्नपूर्वक करें |इस प्रकार अर्चना के द्वारा साधक को निश्चित ही सिद्धिलाभ होता है| हे महादेवि! मेरे इस वाक्य को सत्य, सत्य जाने, इसमे कोई संशय -मात्र व करें!!14!!
         परमपिता कह रहे है कि! मेरे प्रत्येक वाक्य सत्य है... इसमे किसी प्रकार का संशय न करे.. कुलांगनाओं के को पूजन मात्र से ही साधक को सिद्धि लाभ प्राप्त होता है.. जो साधक प्रयत्नपूर्वक उपरोक्त बताई गई कुमारियों का पूजन अर्चना करता है उसे निश्चित ही सिद्धि लाभ प्राप्त होते है|..
 कुमारी पूजा से साधक करोड गुना फल प्राप्त करता है, यदि कुलपंडित फूलों से भरी अंजलि कुमारी को देता है तो स्वर्णमय करोडों मेरूपर्वतों के समान कुमारी को दान देने का फल तत्काल प्राप्त कर लेता है, जिसने एक कुमारी को भोजन करा दिया उसमे त्रैलोक्य को भोजन करा दिया......इसलिए साधना के बाद साधक को किसी कन्या को भोजन कराना चाहिए...
 बृहन्नीलतंत्र"""मे लिखा है कि ---
महाभयातिदुर्भिक्षाद्युत्पातास्तु कलेश्वरी|
दुःखस्वप्नभयमृत्युच्श्र ये चाहिये च समुभ्दवा:!!51!!
कुमारीपूजनादेव न ते च प्रभवन्ति हि|
नित्यं क्रमेण देवशि पूजयेद्विधिपूर्वकम||52||
ध्नन्ति विघ्नान्पूजिताच्श्र भयं शत्रुन्महोत्कटान्|
ग्रहा रोगा: क्षयं यान्ति भूतवेतालपन्नगाः||53!!

बृहन्नील तंत्र मे कहा गया है कि, हे कुलेश्वरी, महाभय, दुर्भिक्ष आदि उत्पात, दुःस्वप्न्न, मृत्यु तथा जो अन्य भारी उपद्रव होते  हैं, वे सब कुमारी पूजन करने से अपना प्रभाव नहीं दिखा पाते |हे देवेशि! क्रम से विधिपूर्वक नित्य ही कुमारीपूजन करना चाहिए |कुमारी पूजन करने वाले मदोत्कट शत्रुओं और विघ्नों को नष्ट कर देते हैं|ग्रह,रोग भूत, बैताल, भी इससे नष्ट हो जाते है|...
अब तो समझ आ गया होगा... कितना महत्वपूर्ण है कुमारी पूजन और कुलाचार... जितने हो सके मैने निखिल ठाकुर ने प्रयास किया इस तंत्र को लिखने का..... और इस तंत्र की व्याख्या करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं.. फिर भी माँचक्रेश्वरी ने मुझे इस कार्य के लिए चुना तो माँ की हृदय से आभार प्रकट करता हूं... जो कुछ इसमे अच्छा लगे व७ मेरी माँ और गुरदेव की कृपा है... जो कुछ कमी रह गई वह मेरी त्रुटि है...
!!इति गुप्तसाधनतंत्रे पार्वतीशिवसंवादे प्रथमः पटलः!!
!! गुप्तसाधनतंत्र मे प्रथम पटल समाप्त!!
आप सबका अपना प्यारा सा
निखिल ठाकुर
!!!!!!!!!सिद्धहिमालय सिद्धपीठ!!!!!!!!!!!

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